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क्या आन उपासना करना व्यर्थ है??

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आन-उपासना करना व्यर्थ है! श्री कृष्ण जी के वकील मूर्ति पूजा करने की राय देते हैं। यह काल ब्रह्म द्वारा दिया गलत‌ ज्ञान है जो वेदों व गीता के विरूद्ध साधना होने से व्यर्थ है। सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में कबीर परमेश्वर जी ने आन-उपासना निषेध बताया है। उपासना का अर्थ है अपने ईष्ट देव के निकट जाना यानि ईष्ट को प्राप्त करने के लिए की जाने वाली तड़फ, दूसरे शब्दों में पूजा करना। आन-उपासना वह पूजा है जो शास्त्रों में वर्णित नहीं है। मूर्ति-पूजा आन-उपासना है:- इस विषय पर सूक्ष्मवेद में कबीर साहेब ने इस प्रकार स्पष्ट किया है:- कबीर , पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार। तातें तो चक्की भली, पीस खाए संसार।।  बेद पढ़ैं पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा। पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।। शब्दार्थ:- किसी देव की पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो शास्त्रविरूद्ध है। जिससे कुछ लाभ नहीं होता। कबीर परमेश्वर ने कहा है कि यदि एक छोटे पत्थर (देव की प्रतिमा) के पूजने से परमात्मा प्राप्ति होती हो तो मैं तो पहाड़ की पूजा कर लूँ ताकि शीघ्र मोक्ष मिले। परंतु यह मूर्ति पूजा व्यर्थ है।...