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Showing posts from 2022

श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी व श्री शिव जी की उत्पत्ति

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 काल(ब्रह्म) ने प्रकृति (दुर्गा) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडे़गा? मनमानी करूँगा। प्रकृति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ शर्म करो। प्रथम तो आप मेरे बड़े भाई हो क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा ( कविर्देव ) की वचन शक्ति से आपकी (ब्रह्म) की अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद मे मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है। दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हूँ। मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए। इन पवित्र नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा। मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है, जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दूँगी। ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी, मिल गई। मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया। अब मैं मनमानी करूँगा। यह कहकर काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने प्रकृति के साथ जबरदस्ती शादी की तथा तीन पुत्रों (रजगुण युक्त ब्रह्मा जी, सतगुण युक्त विष्णु जी तथा तमगुण युक्त शिव शंकर जी) की उत्पत्ति की। जवान होने तक तीनों पुत्रों को दुर्गा के द्वारा अचेत करवा देता है, फिर युवा होने पर श्री ब्रह्मा जी को कमल के फूल पर, श्री विष्णु जी ...

ब्रह्म साधक का चरित्र

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‘‘ ऋषि चुणक द्वारा मानधाता के विनाश की कथा ‘‘ कथा प्रसंग: गीता ज्ञान दाता (ब्रह्म) ने गीता अध्याय 7 श्लोक 16-17 में बताया है कि मेरी भक्ति चार प्रकार के भक्त करते हैं - 1. आर्त (संकट निवारण के लिए) 2. अर्थार्थी (धन लाभ के लिए), 3. जिज्ञासु (जो ज्ञान प्राप्त करके वक्ता बन जाते हैं) और 4. ज्ञानी (केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए भक्ति करने वाले)। इनमें से तीन को छोड़कर चैथे ज्ञानी को अपना पक्का भक्त गीता ज्ञान दाता ने बताया है। ज्ञानी की विशेषता:- ज्ञानी वह होता है जिसने जान लिया है कि मनुष्य जीवन केवल मोक्ष प्राप्ति के लिए ही प्राप्त होता है। उसको यह भी ज्ञान होता है कि पूर्ण मोक्ष के लिए केवल एक परमात्मा की भक्ति करनी चाहिए। अन्य देवताओं (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी) की भक्ति से पूर्ण मोक्ष नहीं होता। उन ज्ञानी आत्माओं को गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 10 में वर्णित तत्वदर्शी सन्त न मिलने के कारण उन्होंने वेदों से स्वयं निष्कर्ष निकाल लिया कि ‘‘ब्रह्म’’ समर्थ परमात्मा है, ओम् (ऊँ) इसकी भक्ति का मन्त्र है। इस साधना से ब्रह्मलोक प्राप्त हो...

क्या आन उपासना करना व्यर्थ है??

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आन-उपासना करना व्यर्थ है! श्री कृष्ण जी के वकील मूर्ति पूजा करने की राय देते हैं। यह काल ब्रह्म द्वारा दिया गलत‌ ज्ञान है जो वेदों व गीता के विरूद्ध साधना होने से व्यर्थ है। सूक्ष्मवेद (तत्वज्ञान) में कबीर परमेश्वर जी ने आन-उपासना निषेध बताया है। उपासना का अर्थ है अपने ईष्ट देव के निकट जाना यानि ईष्ट को प्राप्त करने के लिए की जाने वाली तड़फ, दूसरे शब्दों में पूजा करना। आन-उपासना वह पूजा है जो शास्त्रों में वर्णित नहीं है। मूर्ति-पूजा आन-उपासना है:- इस विषय पर सूक्ष्मवेद में कबीर साहेब ने इस प्रकार स्पष्ट किया है:- कबीर , पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार। तातें तो चक्की भली, पीस खाए संसार।।  बेद पढ़ैं पर भेद ना जानें, बांचें पुराण अठारा। पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजनहारा।। शब्दार्थ:- किसी देव की पत्थर की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करते हैं जो शास्त्रविरूद्ध है। जिससे कुछ लाभ नहीं होता। कबीर परमेश्वर ने कहा है कि यदि एक छोटे पत्थर (देव की प्रतिमा) के पूजने से परमात्मा प्राप्ति होती हो तो मैं तो पहाड़ की पूजा कर लूँ ताकि शीघ्र मोक्ष मिले। परंतु यह मूर्ति पूजा व्यर्थ है।...

रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर (शिव) की पूजा (भक्ति) नहीं करनी चाहिए?

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कहा प्रमाण है कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शंकर (शिव) की पूजा (भक्ति) नहीं करनी चाहिए? उत्तर: श्री मद्भगवत गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 20 से 23 तथा गीता अध्याय 9 श्लोक 23-24, गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में प्रमाण है कि जो व्यक्ति रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव की भक्ति करते हैं, वे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूर्ख मुझे भी नहीं भजते। (यह प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में है। फिर गीता अध्याय 7 के ही श्लोक 20 से 23 तथा गीता अध्याय 9 श्लोक 23-24 में यही कहा है और क्षर पुरुष, अक्षर पुरुष तथा परम अक्षर पुरुष गीता अध्याय 15 श्लोक 16-17 में जिनका वर्णन है), को छोड़कर श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी अन्य देवताओं में गिने जाते हैं। इन दोनों अध्यायों (गीता अध्याय 7 तथा अध्याय 9 में) में ऊपर लिखे श्लोकांे में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि जो साधक जिस भी उद्देश्य को लेकर अन्य देवताओं को भजते हैं, वे भगवान समझकर भजते हैं। उन देवताओं को मैंने कुछ शक्ति प्रदान कर रखी है। देवताओं के भजने वालों को मेरे द्वारा ...

जीने_की_राह_AudioBook

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